गंधार शैली की विशेषताएँ क्या है?गन्धार कला शैली किसे कहा जाता है?गंधार शैली कब लाई गई? गांधार कला को ग्रीको बुद्धिस्ट क्यों कहा जाता है मथुरा कला शैली गांधार शैली की विशेषता बताये गांधार शैली की विशेषताएं गांधार कला का विकास हुआ मथुरा और गांधार शैली में अंतर
यूनानी कला के प्रभाव से भारत के पश्चिमोत्तर प्रदेशों में कला की जिस नवीन शैली का उदय हुआ उसे ‘गंधार शैली’ कहा जाता है। गंधार शैली में भारतीय विषयों को यूनानी ढंग से व्यक्त किया गया है। इस पर रोमन कला का भी प्रभाव स्पष्ट है। इसका विषय केवल बौद्ध है इसलिए इसे कभी-कभी ‘यूनानी-बौद्ध’, ‘इण्डो-ग्रीक’ अथवा ‘ग्रीक-रोमन’ कला भी कहा जाता है। इसका प्रमुख केन्द्र गंधार ही था और इसी कारण यह गंधार कला के नाम से ही ज्यादा लोकप्रिय है। इसमें मूर्तियां काले स्लेटी पाषाण, चूने तथा पकी मिट्टी से बनी है। इस कला की अधिकांश मूर्तियां लाहौर संग्रहालय में सुरक्षित है। कनिष्क के समय इस कला का सर्वोत्तम विकास हुआ। इस शैली की बुद्ध मूर्तियों की मुद्रा यूनानी देवता ‘अपोलो’ से मिलती-जुलती है।